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दूहा / मोहन आलोक

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(श्री कन्हैयालालजी सेठिया री ओळ्यूं मांय)

(१.)
धोरा मैं दीस्यो सदा, जिण रै पाण बसंत ।
अस्त हुई वा दीठ छवि, आप गयां श्रीमंत ॥

(२.)
कैर, कंकेड़ा, रोहिड़ा, सीवण, सिणिया,घास ।
मरू रा गादड़ा लूंकड़ा, थां बिन हुया उदास ॥

(३.)
मरू री बाकळ धूड़ नै, आप चढ़ाई सीस ।
धोरा री धरती करी, सुरगां सूं इक्कीस ॥

(४.)
मरुधर रो गौरव हुई, राणा री तलवार ।
गौरव गाथा थे लिखी, जद कर कलम उठा’र ॥

(५.)
मायड़ रो हेलो सुण्यो, हुया हियै मैं छेक ।
उण पीड़ नै व्यक्त कर, मांड्या कवित अनेक ॥