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"दृढ़ता कभी आश्रित नहीं / महावीर उत्तरांचली" के अवतरणों में अंतर

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जीवन कभी मोहताज नहीं होता
मोहताज तो होता है
हीन विचार, निजी स्वार्थ और क्षीण आत्मविश्वास ।
क्योंकि यह मृगमरीचिका व्यक्ति को
उस वक्त तक सेहरा में भटकती है
जब तक कि
वह पूर्णरूपेण निष्प्राण नहीं हो जाता
इसके विपरीत
जो दृढनिश्चयी, महत्वकांक्षी व स्वाभिमानी है
वह निरंतर
प्रगति की पायदान चढ़ता हुआ
कायम करता है वो बुलंद रुतबा कि —
यदि वो चाहे तो खुदा को भी छू ले ।
वह शख्स घोर निराशा
एवम दु: ख के क्षणों को ऐसे मिटा देता है
जैसे —
किरणों के स्फुटित होने पर
तम का सीना स्वयमेव चिर जाता है ।