भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दृश्य / अनिता मंडा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:20, 11 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता मंडा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी अनजान क्षण में
खिड़की के आधे खुले पल्ले से
आसमान समाता है उसकी आँखों में
उतरती हैं उड़ते पंछियों की टोलियाँ
हृदय के आकाश पर
विचरती है उन्मुक्त हवा
उसके दायें-बायें से
आँखें मूँदकर एक लम्बी साँस में
समो लेना चाहती है सारा दृश्य भीतर

आँखें खोलते ही दीखते हैं
पतंगों के दाँव-पेच
डोर पर हाथों का नियंत्रण और
डोर से कटने के बाद
आसमान में तैरते-तैरते
कहीं दरख़्तों पर
अटक जाती पतंगें
हवा को फड़फड़ाकर सुनाती
अपनी कहानी