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देखब हम ओही दिन / ललितेश मिश्र

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(हेअर द चॉक वाल फाल्स टू फोम
एण्ड इट्स टॉल लेजेज
ओपोज द प्लक एण्ड
नॉक ऑफ द टाइड)
छल-बलसँ बान्हल
ठाम-ठाम दगनीसँ दागल
हमर बाँहि एकटा अननत आकाश थिक
जकर छाहरिमे
समस्त भूमण्डल करैछ
सूर्यक परिक्रमा
उत्थान-पतन होइत अछि
सुख-दुविधा होइत अछि।
क्लीव, शिखण्डीक दुरभिसन्धिमे
हमर बाँहि, मुदा, बान्हल रहैत अछि
छल-बलसँ दागल रहैत अछि
किन्तु, हमर बाँहि एक दिन एतेक
मोट भ’ जाएत
एतेक पैघ ओ बली भ’ जाएत
जे बान्हि लेत समस्त संसारकें
अपन पाशमे
जकड़ि लेत सूर्यपिण्डकें
आ रोकि देत हवा-बसातकें
देखब हम ओही दिन अहाँक
दुरभिसन्धि प्रभावकें
जे उकासी मेटएबाक लेल
अहाँ चाहक फरमाइस करैत छी
आ कि छीकैत रहि जाइत छी...।