Last modified on 31 जनवरी 2015, at 18:09

देखहक हौ गान्धी बाबा / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

देखहक हौ गान्धी बाबा तोरो स्वराजमे
लाखो करै’ छह काँहि-काँहि हौ!

पेटमे न अन्न छै’ न देहपर कपड़ा,
घरमे न खर्ची ने चारपर खपरा,
जेठक चण्डाल दुपहरिया नचै’ छै’
कागा डकै’ छै’ टाँहि-टाँहि हौ!

ढन-ढन पड़ल छै’ घरमे कोठी,
लोक बनल अछि फाँड़ल पोठी,
भात खयनिहारकेँ ने अल्हुआ जुड़ै’ छै’
सब क्यो करै’ अछि फाँहि-फाँहि हौ!

दिनकर तपौने जाइ छथि धरती,
धरती से बांझ पड़ल बनि परती,
करती बहुआसिन की चुलहा जरा कय
नेना करै’ छनि खाँहि-खाँहि हौ!

चेला ओ चाटी से बनलऽ अपावन,
अयलै’ महा पपिआहा सतावन,
लाबनपर डिबिया से छुच्छे पड़ल छै’
टेमी जरै’ छै’ छाँहि-छाँहि हौ!

जीरसन उपजलै’ गहुमक दाना,
आबि गेलै अगिलगुआ जमाना,
छोटका-मझोलकाक बात की कहिअऽ
बड़को खसै’ छै’ धाँहि-धाँहि हौ!

रचना काल 1957 ई.