भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखऽ आगे का होवऽ हे? / सच्चिदानंद प्रेमी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:50, 11 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सच्चिदानंद प्रेमी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखऽ आगे का होवऽ हे?
ढोल बजा के गुरू जी सब दिन
ज्ञान-ज्ञान के खेल रचावत
अंते वासि कल वल छल में
गुरू गोविन के माल पचावथ
गुरूजी चेला पर नित रोवथ
चेला जिंदगी भर रोवऽ हे
देखा आगे क्या क्या होवऽ हे?