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"देखो कहाँ पर आ गया है मोड़ अपनी बात का / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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हरगिज़ गुलाब! ऐसे न वे लगते गले से आपके | हरगिज़ गुलाब! ऐसे न वे लगते गले से आपके | ||
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02:05, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
देखो, कहाँ पर आगया है मोड़ अपनी बात का
आँखें झपकने लग गयीं, पिछला पहर है रात का
हम ज़िन्दगी के खेल से उठकर कभी भागे नहीं
यों तो सदा बनता रहा नक्शा हमारी मात का
धड़का कभी दिल भी कोई, माना हमारे वास्ते
होँठों पे जो आये नहीं, क्या मोल है उस बात का!
चुप होके भी तो दो घड़ी बैठो नज़र के सामने
रुक-रुकके जब बरसे घटा तब है मज़ा बरसात का!
हरगिज़ गुलाब! ऐसे न वे लगते गले से आपके
कुछ और ही जादू हुआ इस दर्द की सौग़ात का