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देखो प्रिय जब मैं घर आँऊ तुम मुझे वो पान खिलाना / शमशाद इलाही अंसारी

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देखो प्रिय, जब मैं घर आँऊ, तुम मुझे वो पान खिलाना
प्रेम की गुलकंद हो जिसमें, छिपा हो सुगंध का ख़ज़ाना।

निकल आएँ पर मेरे उड़ता फ़िरुँ मैं दसों दिशाओं में
सातों लोकों में गाता रहूँ मैं तेरे प्रेम का नया तराना।

सारे रसों का स्वाद हो, तेरा स्वाद हो उसमें सर्वोपरि
जो मै कहूँ तू वो ही करे, चले न तेरा कोई बहाना।

सखी तेरे वक्ष पर प्रेम की हो घन-घन वर्षा
फिसले तू मेरे संग, हो न कोई बैर का फ़साना।

रोप दूँ बीज तुझमें तू है धरती मेरे प्रेम की
जब खिले कोई कमल तब तू मेरा गीत सुनाना।

हर्ष के उमड़ते सागर तुझे चूमा करें रात-दिन
"शम्स"की दुआ है ये तू न उसे अब रुलाना।


रचनाकाल : 25.11.2002