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देखो सखी वर्षा ऋतु आई / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

देखो सखी वर्षा ऋतु आई
बागन मोर मोकिला बोलत,
चातक दादुर शोर मचाई। देखो...
घुमड़-घुमड़ गरजत घन तड़कत,
काली घटा नभ देत दिखाई। देखो...
रिमझिम-रिमझिम बरसत बदरा,
हरी-हरी दूब लता झुक आई। देखो...
सरजू तीर प्रमोद कुंज में,
हिलमिल झूले सिया रघुराई। देखो...
देखो सखि वर्षा ऋतु आई।
उमड़-घुमड़ कर बादल आये
बिजली चमक रही अति न्यारी।
देखो सखि वर्षा ऋतु आई।
काली-काली कोयल कूकत
मीठी बोल लगत है प्यारी
झूला डरो कदंब की डारी
फूलन की शोभा है न्यारी।
चारों ओर बिछी हरियाली
गांवन की शोभा है न्यारी।