भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखौ जे अच्छे दिन आ रये / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:05, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
देखौ जे अच्छे दिन आ रये
सबरे गधा पंजीरी खा रये
मेंगाई तौ रुक नईं पा रई
अब नईं कोउ के मौ खुल पा रये
कां गई छप्पन इंची छाती
सीमा पै दुश्मन गर्रा रये
चीन-चीन कें रेवड़ी बँट रई
सब के सब पद खौं गिदया रये
जी के मौ में जो आ रऔ है
बस वौ राग अलापें जा रये
पैलें कै गए ताव-ताव में
अब का करें समझ नईं पा रये