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देख मोहन तेरी कमर की तरफ / शाकिर 'नाजी'

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देख मोहन तेरी कमर की तरफ
फिर गया मानी अपने घर की तरफ

जिन ने देखे तेरे लब-ए-शीरीं
नज़र उस की नहीं शकर की तरफ

है मुहाल उन का दाम में आना
दिल है माइल बुताँ का ज़र की तरफ

तेरे रूख़्सार की सफाई देख
चश्‍म दाना की नईं गुहार की तरफ

हैं ख़ुशामद-तलब सब अहल-ए-दुवल
ग़ौर करते नईं हुनर की तरफ

माह-रू ने सफर किया है जिधर
दिल मेरा है उसी नगर की तरफ

हश्र में पाक-बाज़ है ‘नाजी’
बद-अमल जाएँगे सक़र की तरफ