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देख लूँ
मैं यह दुनिया
कुछ और दिन
देख लूँ
बच्चों को
और यह हिम
मुस्कान
मेरी सच्ची है
जैसे यह राह
नौकर
नहीं है वह मेरी
कोई बच्ची है गुमराह
(रचनाकाल : दिसम्बर 1936-1938(?)
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देख लूँ
मैं यह दुनिया
कुछ और दिन
देख लूँ
बच्चों को
और यह हिम
मुस्कान
मेरी सच्ची है
जैसे यह राह
नौकर
नहीं है वह मेरी
कोई बच्ची है गुमराह
(रचनाकाल : दिसम्बर 1936-1938(?)