भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं / अफ़ज़ल गौहर राव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देर तक कोई किसी से बद-गुमाँ रहता नहीं
वो वहाँ आता तो होगा मैं जहाँ रहता नहीं

एक मैं हूँ धूप में कितना सफ़र तय कर लिया
एक तू है जो कभी बे-साएबाँ रहता नहीं

तुम को क्यूँ पेड़ों पे लिक्खे नाम मिटने का है दुख
इस बदलती रूत में पत्थर पर निशाँ रहता नहीं

वो बना लेता है अपना घोंसला दीवार में
जिस परिंदे का शजर में आशियाँ रहता नहीं

तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे
बे-ज़मीं लोगों के सर पर आसमाँ रहता नहीं