भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देर तक छाँव को न भाये हम / शैलजा नरहरि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देर तक छाँव को न भाये हम
उम्र भर धूप में नहाये हम

रास्ते गुमरही के थे जिसके
उस क़बीले को छोड़ आये हम

बज़्म में आज़ वो न पहचाने
जिन की यादों में मुस्कुराये हम

ज़िन्दगी भी ज़मीं पे मिलती है
मौत को क्यूँ ख़रीद लाये हम

अब परिन्दे तलक नहीं आते
जिस दरीचे पे खिलखिलाये हम