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देव रहते थे मन्दिरों में / चन्द्रगत भारती

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जो पहले वाला था गाँव अपना
अब उसकी सूरत बदल गई है !
जो देव रहते थे मन्दिरों में
अब उनकी मूरत बदल गई है !

नहाया करतीं बालायें जब भी
दिखाई पड़ती थीं जल परी सी
वहाँ है जलकुम्भियों का डेरा
सभी मछलियाँ हैं अधमरी सी
हैं आज पोखर वहीं पे स्थित
पर उसकी सीरत बदल गई है।।

दिलों में सबके था प्रेम इतना
कि जितना सागर भी दे न पाये
समय था घाटों पे शेर बकरी,
खुशी खुशी थे सदा नहाये
जहाँ घृणा हो ह्रदय में सबके
वहाँ जरूरत बदल गई है।।

जब भी आता था मस्त फागुन
सभी के चेहरे खिलें कमल से
मगर न जाने ये कैसी दुनिया,
गये सभी अब बदल बदल से
अब पर्व कारण हैं दुश्मनी के
सभी की नीयत बदल गई है।।

ये कैसी धारा विकास की है
अभी तलक हम समझ न पाये
तड़प रही है आज गरीबी,
भला कौन है जो दुलराये
तरस रहे कुछ निवाले खातिर
जग की कीरत बदल गई है।