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देश अहींकेर थीक / राजकमल चौधरी

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भाइ बन्धु, सुनै जाउ (जँ संभव हो) क’ लिय’ विश्वास
ई देश अहीँकेर थीक
अधलाह किंवा नीक-ई देश अहीँकेर थीक
कोसिका-कमला-बलान-बागमती-गंडक गंगाक बाढ़ि
बड़ अलबटाहि-बताहि युवती आँचरक पाढ़ि
उन्नत अपस्याँत राधिका, शिथिल अंग, सूतल कान्ह
आमक गाछी-बिरछीमे रातुक अन्हार
गाउ तिरहुत-बटगमनी आ मलार
सीबि सकत नहि कर्मक भोथल सूआ
फाटल पाढ़ि, जरल आँचर, मैल चिक्कट सैंसे नूआ
भगवती-थान
आरो दू-दस हाथ बान्हू मचान
सभ खबास-बोनिहार चलल जाइत रंगपुर-मोरंग कलकत्ता
गाछ-गाछमे लगा लिय’ बिर्नीकेर छत्ता
हाय, बिलाड़िक भागेँ कहियो नहि टूटल सीक
ई देश अहीँकेर थीक, ई देश अहीँकेर थीक

सूतल छथि सूर्य, के जगाओतग’ रति-जग्गीसँ
खोचाड़ि पौत के शयन-पर्यंक दू-बित्ता लग्गीसँ?

(अभिव्यंजना 1: 1960)