Last modified on 11 जुलाई 2020, at 14:41

देश हमारा / जानकीवल्लभ शास्त्री

टुसिआए पाकड़ पर बैठकर भुजंगा
बोल रहा ठाकुर जी, देख रहा दंगा।

भावों की मार-काट मिली-जुली भाषा
तंगदिली, संगदिली, पट्टी और झाँसा।
स्रोत सियासी कि गीत नहा रहे गंगा।

टकटकी अपरिचय की, लिजलिजी उदासी,
कुछ खुमार अँगड़ाई, नीन्द-सी छमासी।
अनसुनी सदा, गुणी लगा रहा अड़ंगा।

कलमल करते नथुने गन्ध सड़ायन्ध,
ख़ून गुनगुनाता क्यों खूँटे, क्यों बन्ध ?
टूँग-खुटक तिनका किनका न बैल चंगा।

नक़्शे में फ़स्ल-भरे, हरे खेत खींचो,
ख़ून-पसीने का क्या, रंगों से सींचो,
देश हमारा न दिखे भूखा या नंगा।