देह-प्राण, मन-बुद्धि, अहं-मम-सभी समर्पणकर मैं आज।
तुमको वरण कर रही केवल, हे वरणीय परम वरराज॥
तुम्हीं सभी कुछ, सब कुछके सब, मैं नित निष्किचन निस्तव।
सत्-सौन्दर्य दानकर तुम ही मुझे सजा लो, हे सर्वस्व॥
देह-प्राण, मन-बुद्धि, अहं-मम-सभी समर्पणकर मैं आज।
तुमको वरण कर रही केवल, हे वरणीय परम वरराज॥
तुम्हीं सभी कुछ, सब कुछके सब, मैं नित निष्किचन निस्तव।
सत्-सौन्दर्य दानकर तुम ही मुझे सजा लो, हे सर्वस्व॥