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देह का रास्ता / अलकनंदा साने

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तुम आते रहे हमेशा मेरे द्वार
अलग-अलग स्वांग रचाकर

कभी सूरज, कभी चंदा,
कभी विष्णु, कभी शिव
कभी राम, कभी कृष्ण
कभी याज्ञवल्क्य, तो कभी गौतम
तुम्हारे लिए मैं कभी अदिति बनी, कभी रोहिणी
कभी लक्ष्मी बनी, कभी पार्वती
कभी सीता बनी तो कभी राधा
कभी गार्गी, कभी अहल्या
और मुझे जबाला बनाना तो सबसे आसान रहा तुम्हारे लिए


हर युग में तुमने मुझे तदर्थ ही लिया
और मैं निभाती रही संविदा कि तरह
तुम्हारे नियमों को

आदि पुरूष ने देह का रास्ता दिखाया था
और तुम अटके हुए हो अभी भी वहीँ पर
लेकिन मुझे किसी भी शब्दकोश में
पुरूष या स्त्री का अर्थ
देह नहीं मिला
मैं भरोसा करती हूँ
शब्दकोशों पर!