देह में झर जाती तुम्हारी आँखों को
कोना-कोना बटोर किसी दिन
चूम कर काजल की अल्पना से सजा
अपनी नैन कोटरों में धर लूंगी
फिर तुम्हारी नज़र से नित निहारूंगी
खुद को और आँखों में उतर आये
नशीले सुर्ख डोरों को दुनिया से छुपा
नींद न आने के बहाने गढ़ लूंगी