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"दे देना ही जीवन है / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर
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22:22, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
जीवन का अपने उत्कर्ष
उसने दिया सहर्ष
जैसे अर्पित करता पुष्प
सुगन्ध युक्त सौन्दर्य
मैंने जो छिपाया उससे
सदियों का था संचित स्वार्थ
और मेरा था ही क्या
रस्सी के बल के सिवाय
दे देना सब कुछ
जीवन है
लेना कुछ भी
मृत्यु वरण है