भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोबाही बीबी नय करिहा / सिलसिला / रणजीत दुधु" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

23:21, 14 जून 2019 का अवतरण

जतना सजा पाना हो पा ला एक सजा के छोड़ के
दोबाही बीबी नय करिहा कहऽ हियो कर जोड़ के।

होते बियाह नउकर बनलूँ नाम पड़ल बउराहा
खाय पड़े हे जोआल भिंडी अउ बयगन कनाहा
चाट रहलूँ हन जुट्ठा चटनी उहो सड़ल परोड़ के
दोबाही बीबी नय करिहा कहऽ हियो कर जोड़ के।

नित उठ के हम बरतन माँजू अउ लगाबूँ झारू,
साड़ी फिच्चूँ पोछा लगाबूँ आउ खेलाबूँ बुतरू,
हँउकऽ ही हम मुँह पर पंखा अउ मँयजऽ ही गोड़ के
दोबाही बीबी नय करिहा कहऽ हियो कर जोड़ के।

उनकर हुकुम हे सिर के ऊपर तइयो हके तबाही
उनकर डरके मारे घर में कोय न´ दे हे गोबाही
कतना बार हमर माय बाप के मारलकी मुँह नछोड़ के,
दोबाही बीबी नय करिहा कहऽ हियो कर जोड़ के।

हरदम हमर घर लगल रहऽ हो अब खूब कूहा
कतनो अगोरऽ हियो राज रात में घुस जा हो चूहा
जवान साथ भाग गेल मेहरी हमरा से मुँह मोड़ के
दोबाही बीबी नय करिहा कहऽ हियो कर जोड़ के।

अगला जनम में ईसवर से माँगम वर रहुँ कुमारा,
पिकवयनी मिरिगनयनी से नय दीहा भेंट दोबारा,
इक्के गलती से रख देलूँ सभे दुखवा बटोर के
दोबाही बीबी नय करिहा कहऽ हियो कर जोड़ के।