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दोस्ती / विनोद पाराशर


मेरे पास नहीं हॆं-
जिन्दगी की वो रंगीन तस्वीरें
जिनसे तुम्हें रिझा सकूं।
मेरे पास नहीं हॆं-
वो मखमली हाथ
जिनसे तुम्हें सहला सकूं।
मेरे पास नहीं हॆं-
वो लोरियां
जिनसे तुम्हें सुला सकूं।
मेरे पास हॆ-
कूडे के ढेर से
रोटी का टुकडा ढूंढते
एक अधनंगे बच्चे की
काली ऒर सफेद तस्वीर
देखोगे ?
मेरे पास हॆं-
एक मजदूर के
खुरदुरे हाथ
जो वक्त आने पर
हथॊडा बन सकते हॆं
अजमाओगे ?
मेरे पास हॆ-
सत्य की कर्कश बोली
जॆसे ’कुनॆन’ की कडवी गोली
खाओगे ?
यदि नहीं
तो माफ करना-
मॆं
आपकी दोस्ती के काबिल नहीं।