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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-78 / दिनेश बाबा

617
दुलहिन छै नव व्याहता, मतर पति सें दूर
फौजों में गेलो पिया, आबै सें मजबूर

618
कपटी के संगत बुरा, चाहे हुवै मंहत
लाभ दियै कतबो मतर, ‘बाबा’ तजो तुरंत

619
मन में धारै छल-कपट, उपरी मिट्ठो बोल
दोस्त बनाबै के कबल, लियै ठीक सें तोल

620
द्वेष निभाबै सर्वदा, करै छद्म व्यवहार
कहै नीति चानक्य के, रहो खूब हुशियार

621
‘बाबा’ ई कहिनो छिकै, आतंकी के राज
आजादी के अर्थ ही, बदली गेलै आज

622
सावधान सब्भंै करै, जनता किन्हें जाय
कत्ते गुंडा के डरें, रहतो लोग नुकाय

623
आजादी के नाम छै, अर्थ हीन गनतंत्रा
छै ई गुलामी आर्थिक, छिकै तहीं परतंत्रा

624
लोगें झेलै छै यहाँ, कत्तेॅ रंग दवाब
जिनगी के पूरा कना, ‘बाबा’ होतै ख्वाब