भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोहा / भाग 1 / रामचरित उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामचरित उपाध्याय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:30, 30 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

शृंगार सुषमा

छत्र लगाये धनरिधर, बिहँसि बजावत वेनु।
बसौ हिये हरि हित-सहित, ग्वाल ग्वालिनि धेनु।।1।।

उर लगियत, परियत पगन, हौं ही करियत कान।
मौन गहौ मानौ कही, मैं न गही पिय मान।।2।।

कीजत इतौ न आतुरी, तजौ चातुरी चाल।
भावत घर रहनो न जौ, क्यौं आवत घर लाल।।3।।

दुरत न करत दुराव कत, अनत बसे जेहि हेत।
नयन नकारे देत हैं, आप नकारे देत।।4।।

केतिकहू सिख दीजियत, मन गहि मान सकैन।
होत पराये आपने, वा नैनन मिलि नैन।।5।।

तजहु सकुच उर निठुर उठु, अजहु तजी नहीं देहु।
नेक नवाजस करहु तौ, एव नवाजस लेतु।।6।।

प्रन न टरै तव, मम टरैं, प्रान-नाथ ये प्रान।
नभ घेरे आवहिं जलद, कीजे जलद पयान।।7।।

अलि मिस बोलि बुलाय कछु, हा साहस इतराय।
इतै चितै चट चोरि चित, लली चली यह जाय।।8।।

करि न दुराव दुरै न किहुँ, देहिं कहे रति रैन।
अलि साने मद बैन ये, ये अलसाने नैन।।9।।

मो तन तकि बतराय कछु, सखि सन सैनन माहिं।
छत से उतरि गई कहूँ, चित ते उतरत नाहिं।।10।।