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दोहे-2 / राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द

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अब उदय भान और रानी केतकी दोनों मिले।
आस के जो फूल कुम्हलाये हुए थे फिर खिले।

चैन होता ही न था जिस एक आसन एक बिन,
रहने-सहने से लगे आपस में अपने रात-दिन।

ऐ खिलाड़ी, यह बहुत था कुछ नहीं थोड़ा हुआ,
आन कर आपस में जो दोनों के गठजोड़ा हुआ।

चाह के डूबे हुए, ऐ मेरे दाता, सब तिरें,
दिन फिरे जैसे इन्हीं के वैसे अपने दिन फिरें।