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दो कदम यूं साथ चलना / राम लखारा ‘विपुल‘

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उम्र की पगडंडियों पर दूर तक जाना पड़ेगा
दो कदम यूं साथ चलना प्यार कहलाता नहीं है।

राह में पत्थर नुकीले और काँटें
हर घड़ी पग-पग मिलेंगे चल सकोगे?
कामनाओं के किए उद्यापनों में
होम होकर के कहो क्या फल सकोगे?
 
वो कभी भी मिल नहीं सकता धुंआं बनकर हवा से
यज्ञ में जो आप जलकर पूर्ण हो जाता नहीं है।

यह जगत की रीत है इतना समझ लो
जब चलेंगे दो कदम तो पाश होगा।
तोड़ दी सरहद अगर तीजे कदम की
सामने फिर मुक्ति का आकाश होगा।

हौंसला है तो सलोने पंख दे दो तुम समय पर
शुभ मुहूरत पार करने का पुनः आता नहीं है।

हाय जग में प्यार के रस्ते न होते
तो किनारे स्वप्न के पौधे न बोते।
और उनकों खाद पानी दे न पाकर
टूट कर फिर तुम न रोते हम न रोते।

नियति से लड़कर विजेता बन सके तो वाहवाही
हार जाए तो उमर भर प्यार मुस्काता नहीं है।