Last modified on 27 अगस्त 2019, at 22:17

दो घड़ी के लिए आप सो जाइए / संदीप ‘सरस’

दो घड़ी के लिए आप सो जाइए,
स्वप्न बनकर नयन में समा लूँ जरा।

प्रीति की पुस्तिका बाँच पाया न मन,
जिल्द बांधा किया आखिरी साँस तक।
तृप्ति की कामना काम ना आ सकी,
मैं भटकता रहा प्रीति से प्यास तक।

पीर जीवन की मृदु गीत में ढ़ाल कर,
आइए चार पल गुनगुना लूँ ज़रा।1।

बादलों ने कहा आसमाँ से सुनो,
चाँद को आवरण में छुपा लीजिए।
है नशीली बला चांद की चांदनी,
भोर होने से पहले चुरा लीजिए।

रात ने दी चुनौती ठहर जाइए,
मैं सितारों की महफिल सजा लूँ जरा।2।

कामना आँसुओं की अधूरी रहीं,
भावनाएँ हृदय की कुँआरी रहीं।
दीप जलता रहा फिर पतंगा जला,
वासनाएँ प्रणय की भिखारी रहीं।

जाने कब जिंदगी को उजाला मिले,
रोशनी की उमर आजमा लूँ जरा।3।