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दो प्राण इक प्रण से मिले / सोनरूपा विशाल

सौभाग्य के उपवन खिले
दो प्राण इक प्रण से मिले।

नव अंकुरण से वृक्ष तक
जीवन के हर इक लक्ष तक
सुख के चले सँग काफ़िले।

भावों से हैं कवितायें ज्यों
फूलों से हैं मालायें ज्यों
तस्वीर में ज्यों रंग खिले।

दाम्पत्य के रस छंद के
तनमन के चिर सम्बन्ध के
चलते रहें सब सिलसिले।