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दो बिहाग / मदन वात्स्यायन

संयोग

गोरी मोरी गेहुँअन साँप महुर धर रे
गोरी मोरी गेहुँअन साँप

फागुन चैत गुलाबी महीने दोंगा पर आई जैसी चाँद
लहरे वात गात मद लहरे गोरी मोरी गेहुँअन साँप

गोरे गात रश्मिवत पतरे रेशमी केंचुल चमाचम
कबरी छत्र कुसुम चितकबरी गोरी मोरी गेहुँअन साँप

टोना नैन तरंग अंग में रोक ली रात मेरी राह
लिपट गई अंग अंग लपट सी गोरी मोरी गेहुँअन साँप

अधर परस आकुल मन मेरा आँगन घर न बुझाए
निशि नहिं नींद न जाग दिवस में गोरी मोरी गेहुँअन साँप

वियोग

दूज की चाँद ये आई आई गोरी रे याद तेरी

यह गंगमूल बसे तू पटना दौड़ी दौड़ी आई जोन्हिंयाँ
शोहरत छाई जो आए आई गोरी रे याद तेरी

महीन लकीर लिखी मुख आभा दीप्त लकीर हँसी
तू नख शिख मुसकाई आई गोरी रे याद तेरी

व्यस्त सकल दिन नींद भरी रतियाँ अधलड़ बेली कोड़ियाँ
तू संध्या की जुन्हाई आई गोरी रे याद तेरी
ध्रुव जोन्ही यह आई आई गोरी रे याद तेरी

नाचती आई चली गई जोन्हियाँ आँखें रहीं ये रही
परिचय दीप्त सुहाई आई गोरी रे याद तेरी
तम आया ज्योति आई आई गोरी रे याद तेरी