भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो शे’र / अमजद हैदराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= अमजद हैदराबादी
 +
}}
  
 
+
<poem>
 
+
 
किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’!
 
किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’!
 
 
हर परदे के बाद और एक परदा नज़र आता है॥
 
हर परदे के बाद और एक परदा नज़र आता है॥
 
  
 
वो करते हैं सब छुपकर, तदबीर इसे कहते हैं।
 
वो करते हैं सब छुपकर, तदबीर इसे कहते हैं।
 
 
हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥
 
हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥
  
(( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।  
+
( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।  
 
+
वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ )
वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ ))
+
</Poem>

18:07, 19 जुलाई 2009 का अवतरण

किस तरह नज़र आये वो परदानशीं ‘अमजद’!
हर परदे के बाद और एक परदा नज़र आता है॥

वो करते हैं सब छुपकर, तदबीर इसे कहते हैं।
हम घर लिए जाते हैं, तक़दीर इसे कहते हैं॥

( हम ख़्वाब में वाँ पहुँचे, तदबीर इसे कहते हैं।
वो नींद से चौंक उट्ठे, तक़दीर इसे कहते हैं॥ )