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दो हाथ / ओम प्रभाकर
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ये फैले
खुले
दो हाथ
ये करें तो क्या करें?
छिली-कुचली-कसमसाती अँजुरियों में
धुआँ-कोहरा-रेत ये कैसे भरें!
रहें सहलाते
पीड़ा से चटकता माथ।
या कि बँधकर
मुट्ठियाँ ही तनें
तड़पें-मिटें जैसे गाज।
लेकिन आज
ये खुले दो हाथ केवल
ये फैले खुले दो हाथ केवल
कौन इनके साथ?
रहें सहलाते
पीड़ा से चटकता माथ।