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दौर-ए-मुश्किल है, रेख़्ता कहना / संजय चतुर्वेद

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दौर-ए-मुश्किल है, रेख़्ता कहना
जुर्म को जुर्म हर दफ़ा कहना

चाँद कहना तो दाग़ भी कहना
जो बुरा है उसे बुरा कहना

जब किताबों में दर्ज़ हों मानी
एक नन्हीं सी इल्तिजा कहना

हम मुकम्मल नहीं मुसल्सल हैं
अक़्लमन्दी को ज़ाविया कहना

दर्द है तो तज़ाद भी होंगे
चुटकुले में मुहावरा कहना

असद उल्लाह ख़ां नहीं होंगे
तुम तो होगे तुम्हीं ज़रा कहना ।

1995