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द्वार हृदय का खोलो / श्वेता राय

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प्रिय प्रियवर प्रियतम तुम मेरे,द्वार हृदय के खोलो।
शुष्क कंठ है मौन अधर पर, नयनों से तो बोलो॥

मैं धरती की तरुणाई तुम,उन्नत भाल दिवाकर।
रति की शोभा रूप लिए मैं, तुम हो ज्योत प्रभाकर॥
मन में बहती प्रेम नदी तुम, महुआरी मद घोलो।
शुष्क कंठ है मौन अधर पर, नयनों से तो बोलो॥

तुम लगते हो अलि के गुंजन,मैं कुसुमित सी क्यारी।
अधरों पर मधु चुम्बन पाकर, खिल जाती मैं प्यारी॥
बहती मैं बन वात सुरमयी, तरु बनकर तुम डोलो।
शुष्क कंठ है मौन अधर पर, नयनों से तो बोलो॥

तुम तट हो पनघट के प्रिय मैं, हूँ पायल की छमछम।
मधुर मिलन के अपने पल में, साँसे चलती थमथम॥
मनभावों की किलकारी को, शब्दों से मत तोलो।
शुष्क कंठ हैं मौन अधर पर, नयनों से तो बोलो।