Last modified on 16 जनवरी 2015, at 13:01

द्विज / शेखर जोशी

यज्ञवेदी
गीत सुस्वर
गृहजाग, समिधा-धूम
ऋचाओं की अनवरत अनुगूँज
रह-रह शंख का उद्घोष !

आज मुनुवाँ द्विज हो गया है ।

अभी कुछ देर पहले
पिता का आदेश पाकर
‘माम भिक्षाम देहि’ कहता
वह शिखाधारी
दण्डधारी
मृगछाला लपेटे
राह गुरुकुल की चला था
लौट आया बाल-बटु फिर
कर न पाया अनसुनी मनुहार माँ की !

गिन रहा अब नोट,
परखता
सूट के कपड़े, घडिय़ाँ
और भी कितनी अनोखी वस्तुएँ
झोली में पड़ीं जो ।

मुनुवँ मगन है अब
आज मुनुवाँ द्विज हो गया है ।

पर, साथ छूटा हमजोलियों का
अब बीती बात होगी:
वे ताल-पोखर
वे अमराइयाँ
जूठी-कच्ची कैरियाँ ।
अब सीधे सम्वाद होगा
अग्नि, सविता औ’ वरुण से

छह पीली डोरियों से मुनुवाँ अब बंध गया है
आज मुनुवाँ द्विज हो गया है ।