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द्वी हजार आठ भादौं का मास / गढ़वाली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

द्वी हजार आठ भादौं का मास
सतपूली मोटर बौंगीन<ref>वह गयी</ref> खास
से<ref>सो</ref> जावा भै बन्दो अब रात ह्वैगी
रुण-झुण, रुण-झुण बारसि लैगे,
काल की सी डोर<ref>मौत की रस्सी की तरह</ref> निदंरा यैगे
घनघोर निंदरा जूब सबू येगी
मोटर का छत पांणी भोरे गे
भादौं का मैना रुण-झुण पांणी
हे पापी नयार क्या बात ठांणी
सबेरी उठीकी जब औंदा भैर
बौगीकि<ref>बहकर</ref> औंदान सांदण खैर<ref>सादण और खैर लकड़ियाँ</ref>
डरैबर<ref>ड्राइवर</ref> कलैंडर सबी कठा होवा
अपणी गाड्यो मा पत्थर मोरा
गरी ह्वै जाली गाड़ी रुकि जालो पाणीं
हे पापी नयार क्या बात ठांणी
अब तोड़ा जंदेऊ कफङ्यों खोला
हे राम, हे राम! हे शिव बोला
डरैबर कलैंडर सबी भेंटी<ref>गले लगाना</ref> जौला
ब्याखन बिटीन येखूली रौला
भग्यानू की मोटर छाला<ref>किनार</ref> लैगी
अभाग्यों की मोटर डूबण लैगी
शिवानन्दी को छयो गोबरदन दास
द्वी हजार रुप्या छया तैका पास
गाड़ी बगदी जब तैन देखी
रुप्यों की गड़ोली<ref>गट्ठी</ref> नयार<ref>नयार नदी</ref> फेंकी
हे पापी नयार कमायों त्वैकू
मंगसीर का मैना ब्यो छऊ मैकू
सतपूली का लाला तुम घौर जैल्या
मेरी हालत मेरी माँमा बोलल्या
मेरी माँ मा बोल्यान तू माजी मेरी
तो रयो माँ जो गोदी को तेरी
मेरी माँ को बोल्यान नी रयी सास
सतपूली मोटर बौगोन खास।

शब्दार्थ
<references/>