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द्वैत / दिनेश कुमार शुक्ल

वह दोभाषिया है
फिर भी दोनों भाषाओं में
बात एक ही बोलता है
जो देखता है

और आप
आप तो कुल मिलाकर
बोलते ही हैं एक वही शब्द
और हर बार उसका भी अर्थ बदल जाता है
कभी दायें से और कभी बायें से करता हुआ वार
हे सेठ, हे अफ़सर, हे नेता-पत्रकार
आप पर फिर भी हम करेंगे एतबार!

द्वैधताएँ तो और भी हैं
विकास-क्रम के सोपान में-
दो दालों वाले बीज ऊपर हैं
एक दाने वाले अन्नों से,
वास्तु के विकास में
दो आँगन वाले मकानों में
एक आँगन एनीमिया और मृत्यु का मुकर्रर हुआ
और एक पौरूष का,
जीव-जन्तुओं के विकास क्रम में
हम जानते हैं

बिल्कुल विषहीन है
दोमुँहा साँप बावजूद इतने ख़तरनाक नाम के,
और हम यह भी जानते हैं
विकास-क्रम में बहुत ऊपर आता है
दो-मुँहा आदमी

लेकिन क्या करें इन वक़्तों का
कि जिनमें
उदारीकरण छीनता है रोजी-रोटी
कि जिनमें
प्रजातन्त्र की कोख से ही पैदा हुए
लंपट लुटेरे नये राजवंश
कि जिनमें
धर्मनिरपेक्षता को बना लिया है ढाल
संसार की सबसे भयानक धर्मान्धता ने