धनसत्ता नै निगल लिया सब आज बच्या कोए धर्म नहीं / मंगतराम शास्त्री
नसत्ता नै निगल लिया सब आज बच्या कोए धर्म नहीं
पशु कै बदलै माणस नै मरवा द्यें आवै शर्म नहीं
जात-धर्म पै बांट दिया जन माणस न्यारा-न्यारा रै
मानवता का मोल घट्या आज शहद हो लिया खारा रै
सत्ता और धर्म ने मिलकै जाळ फैलाया सारा रै
माणस-माणस का बैरी यू कोड जुल्म होया भार्या रै
लगी कोढ़ में खाज की ढाळां ठीक होवै कोए चर्म नहीं
राज की गेल्यां नीति और नीयत का मेल कहा जा सै
जिसा राज उसी प्रजा हो ऊपर तै रोग बहा जा सै
जिब राजा कै हो खौट नीत में क्यूकर भला लहा जा सै
अफवाह और नफरत के हाथां माणस रोज दहा जा सै
झूठ के संग जित जुड़ै आस्था फेर बचै कोए कर्म नहीं
दुनिया के म्हैं माणस ही एक ऐसा जीव बताया रै
जगत भलाई के हित में सदा चिन्तन करता आया रै
यू संसार बसण जोगा खुद माणस नै ही बणाया रै
आज धर्म पै बहम पशु का जन तै बत्ती छाया रै
जब राज अंगारी सुलगा दे फेर कोए धर्म से ज्यादा गर्म नहीं
धर्म बण्या व्यापार आज गठजोड़ राज तै होग्या
इस गफलत में फंस कै माणस अपणी अस्मत खोग्या
ओड़ै गोधरा आड़ै दुलीणा बीज बिघन के बोग्या
कहै खड़तळ कविराय ऊठ क्यूं ताण चादरी सोग्या
जै इन्सान बचैगा तो फेर बचै पशु भी भ्रम नहीं