♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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धनुष यज्ञ साला से मुनि जी आये दो बालक ले आये।
देखो सांवले हैं राम, लखन गोरे हैं माई
शोभा बरनी न जाई।
सो धन्य उनकी माता, जिन गोद है खिलाये। देखो...
जुड़े राजा की समाज,
बड़े-बड़े महाराज, आये लंकाधिराज
धनुष जोर से उठाये धनुष डोले न डुलाये। देखो...
कहत लछिमन से राम, भइया धरती लो थाम,
मची बड़ी धूमधाम
शीश मुनि को नवाये, धनुष लिये हैं उठाये। देखो...
तोड़ शंकर धनु भारी, जाको शब्द भयो भारी
हरसित हो गये नर-नारी
सुनके सुर मुनि फूल हैं बरसाये। देखो...
देखो जानकी जी आई, सखी संग में ले आईं
कर में माल है सुहाई
प्रेम विवश पहिराई न जाई। देखो...