कालतक छेलै जे तनलोॅ अभिमान सें
कालतक छेलै जे अकड़लोॅ आन सें
विवेक के गंगा में नहैलै तनियें टा
पनगरोॅ होय उठलै आदमी के मान सें।
झुलसै के डर-भय सें फूल कली मुरझैलोॅ
मुस्कैलै हुलसी केॅ राहत सें मान सें
लहरैलै लहर एक धरती हिलकोरी केॅ
सिहरी उठलै सरंग पंछी के गान सें।
धन्य-धन्य मची गेलै गोरबाचोप-रीगन के
भरी गेलै घाट-बाट लव्वोॅ अख्यान सें
असरा के सुरुज देव उगलै पछीमोॅ में
पूर्बे निरजासै छै एकटक ध्यान सें।
काना-फूसी हुअेॅ लागलै निराशा के धोली में
काँपी उठलै अन्हार चाँदनी के भान सें
सरङोॅ के गोदी में कुछ उदास तारा छै
ओकर्हौ छै असरा विवेकी इन्सान सें।