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धन का घमंड प्यारे मन से तू दूर कर / महेन्द्र मिश्र

धन का घमंड प्यारे मन से तू दूर कर,
दउलत खजाना माल यहीं छोड़ जाना है।
थोड़ी-सी जिन्दगी में सीताराम ध्यान करो,
जहाँ से तू आया मूढ वोही घर जाना है।
हुज्जत लड़ाई कुछ करने को काम नहीं,
नाहक में सबसे तू बैर कर ठाना है।
द्विज महेन्द्र लाखन में एक बात कही जाय,
काहू को सताओ नहीं अंत मर जाना है।