भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती के अनाम योद्धा / उज्जवला ज्योति तिग्गा

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 11 दिसम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतना तो तय है कि
सब कुछ के बावजूद
हम जिएँगे जंगली घास बनकर
पनपेंगे / खिलेंगे जंगली फूलों-सा
हर कहीं / सब ओर
मुर्झाने / सूख जाने / रौंदे जाने
कुचले जाने / मसले जाने पर भी
बार-बार,मचलती है कहीं
खिलते रहने और पनपने की
कोई ज़िद्दी-सी धुन
मन की अन्धेरी गहरी
गुफ़ाओं / कन्दराओं मे
बिछे रहेंगे / डटे रहेंगे
धरती के सीने पर
हरियाली की चादर बन
डटे रहेंगे सीमान्तों पर / युद्धभूमि पर
धरती के अनाम योद्धा बन
हम सभी समय के अन्तिम छोर तक