धरती शृंगार करी कामिनी के रूप धरी
अंगे अंग आंग धारी जियरा जुड़ाय छै।
उपरोॅ सें मेघराज लागै जेना कामराज
चहु दिशि कामवाण ताकि बरसाय छै।
पछिया निगोड़ा कभी लट बिखराबै कभी
अचरा उड़ावै मुआ यौवन लजाय छै।
पोर-पोर सुलगै छै आजु मन सहकै छै
आजु मीत संयम न तनियो सुहाय छै।