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धर्म / नीता पोरवाल

गूँज सकता था
कण-कण में
मेरे जिस वाद्य यंत्र से
सुरीला संगीत
हत भाग!
आज फूट रहा हृदयभेदी प्रलाप
हर ओर
बहरा करता संवेदनाओं को
अवरुद्ध करता मार्ग रौशनियों का
मगन हो
तुम मद में चूर हो
आज रचते बेसुरी कर्कश धुनों को
मेरे तानपूरे पर
पर देखो
मैं रक्त रंजित कर रहा हूँ
तुम्हारी उँगलियों के साथ
समूचे समय को भी