भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धारावाहिक 8 / वाणी वंदना / चेतन दुबे 'अनिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शारदे ! तुम्हारी ही तो पाकर कृपा की कोर,
बड़े - बड़े पामर भी चतुर चितेरे हैं।
नीरज औ सोम सम चतुर रमा के नाथ, 1
भारत के भूषण2 भी काव्य - मंच घेरे हैं।
निर्भय निडर होके करते हैं काव्य - पाठ,
हास्य कवियों के भी तो गाहक घनेरे हैं।
मातु! मुझपे भी अब कीजिए कृपा की कोर,
डारिए दया की दीठि दास हम तेरे हैं।

1 - रमानाथ अवस्थी 2 - भारत भूषण