भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धारावाहिक 9 / वाणी वंदना / चेतन दुबे 'अनिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मातु हंस वाहिनी ! ओ काव्य की प्रवाहिनी माँ !
रहो सदा दाहिनी माँ! तनिक निहारि दे।
श्वेत वस्त्र धारिणी! ओ मानस विहारिणी! ओ,
सुषमा की सारिणी! कृपा की कोर पारि दे।
ओरी पदमासना ! मिटा दे सब वासना तू,
दासन के दास पे दया की दीठि डारि दे।
ऐसी ममता दे मातु! ऐसी समता दे मातु!
तेरा हर पूत तोपे तन मन वारि दे।