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धार पर / अज्ञेय

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     हाँ, हूँ तो, मैं धार पर हूँ
     गिर सकता हूँ।
     पर तुम-तुम पर्वत हो कि चट्टान हो
     कि नदी हो कि सागर हो

     (मैं धार पर हूँ)
     तुम आँधी हो कि उजाला हो
     कि गर्त्त हो कि तीखी शराब हो कि तपा मरुस्थल हो
     (मैं धार पर हूँ)

     कि तुम सपना हो कि कगार तोड़ती बाढ़ हो
     कि तलवार कि भादों की भरन हो
     कि व्रत का निशि-जागर हो-
     (मैं धार पर हूँ)

     कि तुम-तुम-तुम उन्माद हो
     कि विधना की कृपा हो कि मरन हो कि प्यार हो
     जो मैं धार पर हूँ...

1972