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"धिग् प्राणी / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

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जीवकी दया जेहि जीय व्यापै नहीं,
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भुखे आहार प्यासे न पानी।
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साधुसों संग नहि शब्दसाँ रंग नहि,
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बोलि जाने न मुख मधुर वानी॥
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एक जगदीश को शीष अर्पे नहीं,
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पाँच पच्चीस बहु बात ठानी।
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रामको नाम निज धाम विश्राम नहि,
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धरनि कह धरनि सो धिग्ग प्रानी॥5॥
 
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04:31, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

जीवकी दया जेहि जीय व्यापै नहीं,
भुखे आहार प्यासे न पानी।
साधुसों संग नहि शब्दसाँ रंग नहि,
बोलि जाने न मुख मधुर वानी॥
एक जगदीश को शीष अर्पे नहीं,
पाँच पच्चीस बहु बात ठानी।
रामको नाम निज धाम विश्राम नहि,
धरनि कह धरनि सो धिग्ग प्रानी॥5॥