धीरे झूलो री राधा प्यारी जी.
नवल रंगीली सबै झुलावत गावत सखियाँ सारी जी॥
फरहरात अंचल चल चंचल लाज न जात संभारी जी.
कुंजन ओर दुरे सखि देखत प्रीतम 'रसिकबिहारी' जी॥
धीरे झूलो री राधा प्यारी जी.
नवल रंगीली सबै झुलावत गावत सखियाँ सारी जी॥
फरहरात अंचल चल चंचल लाज न जात संभारी जी.
कुंजन ओर दुरे सखि देखत प्रीतम 'रसिकबिहारी' जी॥