http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%81%E0%A4%A7,_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE&feed=atom&action=historyधुँध, कुहासों जैसी बातें / पंखुरी सिन्हा - अवतरण इतिहास2024-03-29T10:11:31Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%81%E0%A4%A7,_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE&diff=164840&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंखुरी सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया2013-10-22T15:52:45Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंखुरी सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
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|रचनाकार=पंखुरी सिन्हा<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
पश्मिने के शाल पर कढा़ई की नहीं<br />
पश्मिने के असल होने के अन्वेषण की बातें<br />
बातें अनुसन्धान की<br />
उस गर्माहट में होने की बातें<br />
खालिस कश्मीरी उच्चारण में<br />
पश्मिने की बातें<br />
कश्मीरी आवाज़ में ढेरों-ढेर पश्मिने की बातें<br />
जैसे पश्मिने की खेती<br />
जैसे भेड़ पालना<br />
इन सब गरम गुनगुने ख़यालों से दूर<br />
यान्त्रिक कुहासों की बातें<br />
जैसे क़दम-क़दम पर रुकना<br />
लोकल ट्रेन का<br />
जैसे अलग-अलग लोकल ट्रेनों में सफ़र<br />
अलग-अलग शहरों में<br />
बस निरंतरता सफ़र की<br />
और पहुँचना कहीं नहीं<br />
उलझे रहना<br />
ढेरों दफ़्तरी फ़ाइलों में<br />
ढेरों दफ़्तरी फ़ाइलें<br />
निपटाने को<br />
रिपोर्ट, चिट्ठियाँ<br />
और बातें घर,पत्नी, बच्चों कीं<br />
मसरूफ़ियत की<br />
और आना चाय-कॉफ़ी पर<br />
सारे दोस्तों का<br />
पकौड़ों का कुरमुरापन<br />
तलते बेसन की ख़ुशबू<br />
तलछट कड़ाही की<br />
बचा तेल<br />
पत्नी की सुघड़ता<br />
महीने के खर्च का हिसाब<br />
धनिये, पुदीने, गुड़ और टमाटर की चटनी<br />
यहाँ तक कि इमली की भी<br />
चटखारेदार बातें<br />
और बीच में<br />
दफ़्तरी फ़ोन का आहिस्ता बजना<br />
और सवाल ढेरों ख़ुफ़िया<br />
पेशानी पे बल<br />
माथे की लकीरें<br />
वो तमाम बातें जिनसे बनी होती हैं<br />
लोगों की ज़िंदगियाँ<br />
ज़िन्दगी की तमाम खूबसूरतियाँ<br />
और बातें ईमान कीं<br />
ढेरों-ढेर ईमान कीं<br />
तराज़ू में तोलने की<br />
लोगों के ईमान को<br />
रूह की, ज़मीर की<br />
पुरुषत्व की, वर्चस्व की<br />
उन तमाम एहसासों की<br />
जो दफ़्तर से घर<br />
और घर से दफ़्तर<br />
आते-जाते हासिल होते हैं।<br />
</poem></div>अनिल जनविजय